“नीतीश सब पर 20 ” जी हां आज यह पोस्टर बिहार में सरेआम लग चुका है। बिहार में नीतीश कुमार ने पूरे भाजपा को घुटने पर ला दिया है। बिहार में सियासी उथल-पुथल के बिच NDA के नेता नितीश कुमार को चुना गया है। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वालेअमित शाह और पीएम मोदी, नीतीश कुमार के चुनावी दाव में उलझते हुए दिख रहें हैं। दरअसल नीतीश कुमार अकेले ही पूरे बिहार की यात्रा पर निकल चुके हैं, जिसका नाम है विकास यात्रा। बिहार में दो डिप्टी सीएम है । दोनों भाजपा के हैं लेकिन दोनों डिप्टी सीएम नीतीश कुमार की यात्रा से गायब है। तो क्या नीतीश कुमार सरकार गिराने की तैयारी में है क्या । अगर इस बार नीतीश कुमार फिर से पाला बदलते हैं तो बिहार की वर्तमान सरकार अल्पमत में आ जाएगी तो, वहीं केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार भी संकट से घिर जायेगी। और यह बात भली-भांति बीजेपी के चाणक्य और प्रधानमंत्री को पता है। कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में नीतीश के दाव से बीजेपी चित हो चुकी है।
बिहार NDA में ठीक नहीं है सबकुछ
काशीराम जी ने एक बार कहा था कि मजबूत नेता नहीं मजबूर नेता चुनो। इस बार लोकसभा में जनता ने यही किया। 2014 में जब बीजेपी जीती तो, नाम था बीजेपी सरकार, 2019 में जीती तो कहा गया मोदी सरकार, परंतु 2024 में एनडीए की सरकार है। और एनडीए की सत्ता की चाबी तीन दलों के पास है जिसके केंद्र में है चिराग पासवान, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार। दरअसल हरियाणा में बीजेपी के मंथन समारोह के के बाद पत्रकार ने अमित शाह से सवाल पूछ लिया कि बिहार में मुख्यमंत्री काअगला चेहरा कौन होगा। इस पर अमित शाह की बोल दिया कि बिहार चुनाव का नेतृत्व का फैसला भाजपा का संसदीय बोर्ड करेगा। फिर क्या था, नीतीश कुमार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है, उन्होंने इस नजाकत को भांप लिया।
कहीं नीतीश ना बन जाए बिहार के एकनाथ शिंदे।
अभी हाल में ही हुए महाराष्ट्र चुनाव में जो एकनाथ शिंदे का हाल हुआ। महाराष्ट्र चुनाव एकनाथ शिंदे के चेहरे पर ही लड़ा गया परंतु चुनाव जीतने के बाद भी एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और उन्हें ना ही उन्हें मनपसंद विभाग ही मिला। नीतीश कुमार इसी प्रेशर पॉलिटिक्स से निकलने के लिए अपनी नई राह तलाशते हुए नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार एनडीए में होने के बावजूद भी अकेले हीं विकास यात्रा पर निकल चुके हैं। माना जाता है कि उनके इस यात्रा का उद्देश्य अपने द्वारा किए गए कार्य को जन-जन तक पहुंचाने कि है। नीतीश कुमार की नाराजगी को देखते हुए बिहार बीजेपी ने स्पष्ट किया कि अगले चुनाव में नीतीश कुमार ही गठबंधन के मुख्य चेहरे बने रहेंगे। इससे स्पष्ट होता है कि नीतीश कुमार का तीर सीधे निशाने पर लगा है।
अमित शाह के बयान से नीतीश है नाराज।
दरअसल अमित शाह के द्वारा बाबा साहेब अंबेडकर पर दिया गया बयान को विपक्ष मुद्दा बने हुए हैं। चुकी नीतीश कुमार का वोट बैंक भी यही पिछड़ा वर्ग है । इस कारण नीतीश कुमार को भी अमित शाह से नाराज बताया जा रहा है। जहां इस मुद्दे पर सभी पार्टियों अपना पक्ष रख रही है, वहीं जेडीयू इस पर चुप्पी बनाए हुए हैं। अंदरखानें यह चर्चाएं चल रही है की पटना और नई दिल्ली के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है। नीतीश कुमार सही मौके का लाभ लेना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, और उनमें अभी बहुत राजनीति बाकी है।
वफा बोर्ड बिल और एक देश एक चुनाव पर भी नहीं है एक राय।
दरअसल वफ्फ बोर्ड और एक देश एक चुनाव को मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में देखा जाता है। परंतु बिहार के नीतीश कुमार जिस विचारधारा से आते हैं, उस विचारधारा के अनुसार वह कहीं ना कहीं इन मुद्दों पर असहज नजर आते हैं। संभवत यही कारण है की इन मुद्दों पर वह बीजेपी के साथ एकमत होते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स के माध्यम से बीजेपी को अपना महत्व समझाने में सफल होते हुए नजर आ रहे हैं। मोदी सरकार का स्पष्ट बहुमत न ला पाना नीतीश कुमार के लिए वरदान साबित होता नजर आ रहा है। आगे आने वाले चुनाव में अभी और कितने उतार-चढ़ाव आने बाकी है इसे देखना दिलचस्प होगा।