One Nation One Election : एक देश एक चुनाव की जरुरत क्यों? क्या है मोदी सरकार की मंशा ?

One Nation One Election एक देश एक चुनाव की जरुरत क्यों क्या है मोदी सरकार की मंशा

One Nation One Election (एक देश एक चुनाव) को मोदी सरकार की कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई थी जिसकी अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद थे। कमेटी की रिपोर्ट पर मोदी सरकार की मंजूरी मिलते हीं देश में बहस छिड़ गई है जिसके केंद्र में है एक देश एक चुनाव।

राहों में हैं कई अड़चनें !
वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने का राह आसान होने वाला नहीं है। इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है। इसके बाद ही इसे लागू किया जा सकता है। मोदी सरकार अपने इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए 2014 से ही प्रयासरत है। अब जाकर यह फाइनल हो गया है कि मोदी सरकार शीतकालीन सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन बिल लाने जा रही है।


कोविंद की कमेटी ने रिपोर्ट में क्या कहा ?

1. रामनाथ कोविंद की कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि चुनाव दो चरणों में कराया जाए
2. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव हो।
3. दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायत का चुनाव हो
4. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के 100 दिन के भीतर ही स्थानीय निकाय के चुनाव कराने की सिफारिश की गई है।
5. इस पर 47 राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी राय दी है।
6. सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाया जाए।
7. चुनाव के लिए सुरक्षा बलों के लिए अग्रिम योजना तैयार किया जाए।


वन नेशन वन इलेक्शन की जरूरत क्यों ? One Nation One Election
वन नेशन वन इलेक्शन की मांग सन् 1999 से ही शुरू हो गई थी। इसके पहले भी पिछली कई सरकारों ने इसे लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन कानूनी दांव पेंच से यह मामला हर बार लटक जाता था। इसकी जरूरत इसलिए भी है कि देश के किसी न किसी जिले में साल भर में कई बारआचार संहिता लागू की जाती है। लोकसभा चुनाव,विधानसभा चुनाव, नगर निगम और पंचायत चुनाव के वजह से आचार संहिता लागू होता है। आचार संहिता के लागू होने से विकास की योजनाओं पर गहरा असर पड़ता है। देश में लगातार चुनाव की स्थिति रहने से नीतिगत और प्रशासनिक फैसले लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई जरूरी काम इससे प्रभावित हो जाते हैं।


क्या इससे पहले भी देश में हुए एक साथ चुनाव (One Nation One Election)
भारत की आजादी के बाद पहली बार सभी चुनाव एक साथ ही हुए थे। साल 1952 में जब चुनाव हुए तो राज्यों का चुनाव भी एक साथ ही कराया गया था। इसके बाद 1957 1962 और 1967 में भी चुनाव केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ ही हुए थे। लेकिन साल 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह के बगावत के चलते सीपी गुप्ता की सरकार गिर गई। और इसके साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का एक साथ चुनाव कराने का क्रम टूट गया। इसके बाद साल 1968 और 1969 कुछ राज्यों की सरकारें समय से पहले ही भंग हो गई। 1971 के जंग के बाद चुनाव समय से पहले कर दिए गए। इसे चुनावी गणित पूरी तरह बिगड़ गया।


एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कौन-कौन से संशोधन करने होंगे।
देश में दो पेज के चुनाव कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक सिफारिश की आवश्यकता होती है। देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा।। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172 , 174 और 356 में संशोधन का जिक्र किया गया है।


एक साथ चुनाव होने से किसे होगा नुकसान। (One Nation One Election)
देशभर में एक साथ चुनाव है होते हैं तो क्षेत्रीय पार्टियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि मतदाता विधानसभा में राज्यों के विषयों को ध्यान में रखकर वोट करता है और लोकसभा में देश की समस्या को देखकर वोट करता है। तो वहीं क्षेत्रीय पार्टियों को राज्य में मुद्दा उठाने का पूरा मौका होता है।

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