क्या आपको पता है ? द ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना से भी पुराना है बिहार के राजगीर का “साइक्लोपियन दीवार”।

अब तक आपने विश्व के सात अजूबों के बारे में सुना होगा या उसके बारे में पढ़ा भी होगा। उनमें से एक चीन की दीवार भी है। चीन की दीवार दुनिया के सात अजूबों में शामिल है। सब इसके विशाल बनावट और भव्यता के कायल है। पर क्या आपने दुनिया की सबसे पुरानी दीवार के बारे में सुना ? आपको आज की इस लेख में चीन की दीवार से भी पुरानी दीवार के बारे में बतलाएंगे जो भारत में बिहार के राजगीर में स्थित है।


जी हां, बिहार कि राजधानी पटना से लगभग 100 किलोमीटर दूर राजगीर में एक ऐसा अजूबा है, जिसे चीन की दीवार से भी सैकड़ों साल पहले खड़ी कर दी गई थी। यह समृद्ध मगध साम्राज्य कि एक ऐसी कलाकृति जो अपने आप में एक आठवां अजूबा है। बिहार के नालंदा जिले में पांच पहाड़ियों से घिरे राजगीर में यह प्राचीन दीवार आज भी शान से खड़ी है। इस दीवार का नाम है राजगीर साइक्लोपियन वॉल। इस दुनिया के सबसे पुरानतम साइक्लोपियन वाल के रूप में भी जाना जाता है। यह दिवाल उस समय पूरे राजगीर साम्राज्य की सबसे बड़ी सुरक्षा कवच मानी जाती थी।


चीन की दीवार से 300 साल ज्यादा पुराना-
राजगीर की यह दीवार चीन की दीवार से भी लगभग 300 साल पुरानी मानी जाती है। और इसकी बनावट ऐसी है कि 40 किलोमीटर लंबे इस दीवाल में पूरा का पूरा राजगीर साम्राज्य सुरक्षित था। इस दीवाल के चारों ओर साम्राज्य की सुरक्षा करने वाले सुरक्षा प्रहरी खड़े रहते थे, जो शत्रुओं से होने वाले खतरों का बचाव किया करते थे।


क्या है राजगीर और साइक्लोपियन दीवाल का इतिहास?
राजगीर का इतिहास सदियों पुराना माना जाता है। यह क्षेत्र मगध साम्राज्य के उदय का प्रमुख केन्द्र रहा है। इसे तब राजगृह के नाम से जाना जाता था। यह मगध साम्राज्य के प्राचीनतम राजधानी में से एक था। मगध की राजधानी राजगीर में खड़ा साइक्लोपियन दीवार 2500 सालों से भिंजयादा पुराना माना जाता है। इस प्राचीन दीवार का संबंध मौर्य काल से बताया जाता है। मान्यता है कि मगध साम्राज्य के बिंबिसार ने पूरे राजगृह साम्राज्य की सुरक्षा के लिए, इस साइक्लोपियन दीवार का निर्माण कराया था।

यह दीवार विशाल चूने के पत्थरों से निर्मित किया गया है। इस दीवार की खास विशेषता यह है कि इन पत्थरों को चिनाई के लिए पत्थर के अलावा किसी दूसरी सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यहां तक की बड़े- बड़े पत्थरों को संतुलित करने के लिए भी उनके बीच छोटे पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। राजगीर की साइक्लोपियन दीवार की बनावट इसकी सबसे बड़ी खासियत है। यह दीवार उसे समय की सबसे बेहतरीन इंजीनियरिंग का नायाब उदाहरण है। इस दीवार की पूरी लंबाई लगभग 40 किलोमीटर है। यह उसे समय पूरे राजगीर साम्राज्य को सुरक्षा प्रदान करती थी। इस दीवार की चौड़ाई लगभग 22 फीट और ऊंचाई लगभग 4 मीटर है। इस दीवार का निर्माण सिर्फ पत्थरों को जोड़कर किया गया है।


खास बात यह है कि इस दीवार की चुनाई के लिए ना ही गारा अथवा ना ही चुने का इस्तेमाल किया गया है। इस पूरे दीवार की बाहरी दीवार बड़े पत्थरों से तैयार की गई है जबकि इसके भीतर छोटे-छोटे पत्थर लगाए गए हैं। यह दीवार इतनी मजबूत है कि मौसम की सैकड़ो वर्षों के थपेड़े को सहते हुए, आज 2500 सालों के बाद भी यह दीवार पूरी मजबूती के साथ खड़ी है। इस दीवार का निर्माण बाहरी आक्रमणकारियों से बचने के लिए हुआ था। यह पूरा का पूरा दीवार राजगीर के चारों और सुरक्षा देती हुई ऊंची – ऊंची पंच पहाड़ियों के ऊपर से हुआ था।


नालंदा में शोध करने वाले रिसचर्स यह बताते हैं कि साइक्लोपियन दीवार भारत के प्राचीनतम धरोहरों में से एक है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया और बिहार सरकार को मिले सक्ष्य के आधार पर यह कहा जा सकता है की महान शासक बिंबिसार के शासनकाल में इसका निर्माण हुआ था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के राजा बिंबिसार ने इस पूरे क्षेत्र का विकास करवाया था।


पांच पहाड़ियों के सीने के बीच खड़ी यह प्राचीन दीवार बिहार के गौरवशाली इतिहास का बखान करती है। अगर आपको मेरी यह लेख बिहार के गौरवशाली इतिहास की जानकारी देती है, अगर आपने बिहार की एक और धरोहर के बारे में इस लेख के माध्यम से जाना है तो आप इसे अपने मित्रों के साथ साझा कर सकते हैं। ताकि बिहार की यह विरासत युवाओं से और आने वाली पीढ़ी से वंचित न रह जाए।

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