भारतीय आज भी हैं डिजिटल गुलाम, इस क्षेत्र में आज भी चलती है विदेशी कंपनियों की मनमानी।

बात कड़वी है मगर सच है। पश्चिमी दुनिया चाहे तो आज भी भारत को घुटने पर ला सकती है। आज से 200 साल पहले अंग्रेज फिजिकल भारत पर राज करते थे। आज डिजिटल हर घर की प्रत्येक सदस्यों तक उनकी पकड़ है। फिर चाहे एंड्रॉयड हो, गूगल हो, एप्पल हो, फेसबुक हो, इंस्टाग्राम हो, या यू ट्यूब हो।


आपको जानकर हैरानी होगी कि आप जो मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, उसके ऐप्स 99% विदेशी कंपनियों के भरोसे है। आज इजराइल से लेकर अमेरिका तक टेक्नोलॉजी के मामले में उन तमाम विकसित देशों के दुनिया भर के इतने डेटा मौजुद हैं कि अगर भविष्य में कभी डिजिटल वार हुआ, तो हम उन्हें चाह कर भी नहीं हरा पाएंगे।


ऐसा ही डेटा पहले चीन इकट्ठा कर रहा था। परंतु भारतीय सरकार ने महज 2 सालों में दर्जनों चीनी एप्स को बंद करते हुए डिजिटल वार में उसे पटखनी दे दी। परंतु एक गंभीर सवाल यह है कि क्या दूसरे विदेशी देश जो हमारी पल-पल की जानकारी रखते हैं, क्या हम उनसे कभी सुरक्षित हो पाएंगे?


देखा जाए तो पिछले दो दशक में विदेशी कंपनियों ने टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इतने उन्नत हो गए हैं की दुनिया के कोई भी देश उसे टक्कर देने की काबिलियत नहीं रखते हैं। दुनिया के चुनिंदा विदेशी कंपनियों का हमारे दैनिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। वे टेक्नोलॉजी के मामले में इतने उन्नत है कि हमारे द्वारा क्या सर्च किया जाता है? हमे किन क्षेत्रों में रुचि है? और हमें किस तरह के कंटेंट पसंद है? यह सभी जानकारियां उनके पास मौजूद रहती हैं।


इंटरनेट की दुनिया में किसी भी चीज को सर्च करने के लिए हम गूगल सर्च इंजन का इस्तेमाल करते हैं। पिछले दोस्त दशकों में गूगल सर्च इंजन इतना पावरफुल बन गया है कि, हमें देश दुनिया की हर खबर चंद सेकंड में मिल जाती है। एक प्रकार से सर्च इंजन के क्षेत्र में गूगल का एकाधिकार माना जा सकता है। आपकी एंड्राइड मोबाइल में किसी ऐप को डाउनलोड करना हो तो हम गूगल प्ले स्टोर का इस्तेमाल करते हैं, जहां पहले से ही बहुत सारे ऐप मौजूद होते हैं। हम इन एप्स को चंद मिनटों में इंस्टॉल करके उपयोग करना शुरू कर देते हैं। इसका मतलब यह है की प्ले स्टोर किसी भी मोबाइल के दिल की धड़कन है उसके बिना कोई भी एप्स आपके मोबाइल में इंस्टॉल नहीं हो सकते।


हमारी इसी मजबूरी का फायदा उठाकर गूगल में एंड्रॉयड बनाने वाली कंपनियां के बीच अपना एकाधिकार जमा लिया है। आजकल हम जो भी एंड्रॉयड फोन खरीदने हैं उसमें से पहले ही गूगल प्ले स्टोर इंस्टॉल होता है। इसके लिए गूगल फोन बनाने वाली तमाम एंड्रॉयड कंपनियों से तगड़ा कमीशन लेता है। वही जब कोई डेवलपर अपना ऐप, गूगल प्ले स्टोर पर लांच करता है तो उससे भी गूगल का कमीशन फिक्स होता है। इससे डेवलपर का भी काफी नुकसान होता है।


इस तरह से गूगल समेत तमाम पश्चिमी देशों की कंपनियां, टेक्नोलॉजी के मामले में अपनी बादशाहत कायम रखती हैं और इस प्रकार वह अन्य छोटी कंपनियों को अपनी टर्म और कंडीशन पर चलाते हैं। या यूं कहीं की अपनी उंगलियों पर नाचते हैं।
भारत सरकार ने मेक इन इंडिया के तहत अमेरिकी कंपनियों के प्रभाव को काम करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। परंतु इंटरनेट का यह क्षेत्र इतना व्यापक है, की विदेशी कंपनियां को पूरी तरह से एकाधिकार को समाप्त करने के लिए काफी वक्त लगने वाला है।

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