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चीन के कर्मचारी सप्ताह में करते हैं कितने घंटे काम ? क्या है उनके वास्तविक हालात !

इन दिनों भारत में अलग-अलग उद्योगपतियों, कंपनी के सीईओ, और कम्पनी मालिकों का बयान सामने आ रहा है जिसमें यह बहस छिड़ी हुई है की किसी भी कंपनी के श्रमिकों को सप्ताह में कितने घंटे काम करने चाहिए और उन्हें कितनी छुट्टियां मिलनी चाहिए?


इंफोसिस के को फाउंडर NR Narayana Murthy ने भारत की कंपनियों में काम करने वाले लोगों को 70 घंटे काम करने की नसीहत दी थी। तो वहीं L&T के चेयरमैन एसएन. सुब्रमण्यन ने तो कंपनी के कर्मचारियों को 90 घंटे काम करने की सलाह दे डाली। इसका मतलब है कि अगर सप्ताह के सातों दिन काम किया जाए तो प्रतिदिन लगभग 13 घंटे। और अगर कहीं एक दिन की छुट्टी ली जाए तो प्रत्येक दिन लगभग 15 घंटे काम करने होंगे। अपने तर्क के समर्थन में सुब्रमण्यम ने चीनी कंपनियों का उदाहरण देते हुए बताया कि, चीन के कर्मचारी सप्ताह में लगभग 80 से 90 घंटे काम करते हैं। जिसके वजह से उनके देश की तेज गति से तरक्की हो रही है।


तो लिए आज हम अपने लेख में चीन के एक कपड़े बनाने वाली कंपनी की बात करते हैं और यह समझते हैं कि वहां के मजदूर किन हालातो में काम करते हैं। क्या उन्हें उनके मेहनत के हिसाब से पैसे मिलते हैं? और इस विषय पर चीन की कंपनियों का क्या कहना है इसके बारे में भी जानेंगे।


चीन में कपड़े बनाने वाली दिग्गज कंपनी (शीन)Shine जो फैशन की दिग्गज कंपनी मानी जाती है, उसकी कर्मचारी लगभग 75 घंटे से ज्यादा काम करते हैं। इसे चीन के श्रम कानून का उल्लंघन माना जा सकता है। चीन की श्रम कानून के अनुसार एक कर्मचारी को एक दिन में 8 घंटे और सप्ताह में सिर्फ 40 घंटे ही काम करना होगा। लेकिन चीन के दक्षिणी शहर ग्वांगजों में काम करने वाले लोगों का घंटे का बढ़ना कोई नहीं बात नहीं है।


जानकारी के मुताबिक शहर की फैक्ट्री में जिन हालात में लोगों को काम करने पर मजबूर किया जाता है, उससे और भी ज्यादा गंभीर सवाल खड़े होते हैं। कंपनी का इतने कम कीमत पर कपड़े का निर्माण करना आश्चर्यजनक है। शीन villege में लगभग 5000 से ज्यादा कामगार शिन Shine कंपनी में ही काम करते हैं। और उनके काम करने के घंटे कंपनी की घड़ियां तय करती है। वहां काम करने वाले श्रमिक को कपड़ों के प्रति पीस के सिलाई की आधार पर पैसे मिलते हैं। इसका मतलब यह है कि कम घंटे में ज्यादा कपड़े सिलने वाले लोगों की ही आमदनी अधिक होगी।


वहां पर काम कर रहे कर्मचारियों के अनुसार “साधारण टी शर्ट बनाने के लिए मुझे एक या दो युवान दिए जाते हैं, और वह 1 घंटे में लगभग 12 टी-शर्ट बन सकतें हैं। इसके बावजूद मेरी आमदनी बहुत कम है। और मुझे इस शहर में रहने का खर्च इससे कहीं ज्यादा होता है।”


यहां पर काम करने वाले श्रमिक हजारों किलोमीटर दूर से ग्वांगज़ों पहुंचते हैं, ताकि पैसे कमा कर अपने परिवार को भेज सकें। उसे शहर में काम करने का सबसे बड़ा जरिया शीन (shine) कंपनी ही है। क्योंकि उसे शहर में रहने वाले लगभग 80% लोग इसी कंपनी के कपड़े बनाकर अपनी जीविका चलाते हैं। इसका साफ मतलब यही है की ग्वांगजो शहर में रहने वाले कर्मचारी सीन कंपनी के धड़कन कहे जा सकते हैं और यह धड़कन कभी नहीं रुकती।


यहां काम करने वाली लगभग एक दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों ने बताया है कि वह सप्ताह में लगभग 75 घंटे से ज्यादा काम करते हैं। जो चीन के श्रम कानून का उल्लंघन है। यहां काम करने वाले अधिकतर कर्मचारियों को महीने में सिर्फ एक दिन की छुट्टी मिलती है। जबकि वहां बनने वाले प्रोडक्ट अमेरिका इंग्लैंड और यूरोप जैसे देशों में बिकने के लिए तैयार कराए जाते हैं। यहां पर आसपास की सप्लायरों के द्वारा कपड़ा लगातार उपलब्ध कराया जाता है। शीन कंपनी की के सफल होने के लिए जिन भी चीजों की आवश्यकता है , वह आसपास शहर में उपलब्ध हो जाते हैं।


यहां कई कर्मचारियों के द्वारा जबरदस्ती काम कराए जाने का आरोप भी लगाया जाता है। यहां तक की कंपनी के फैक्ट्री में बाल मजदूरी करने के कई मामले मिले हैं। कंपनी पर आरोप है कि कर्मचारी न सिर्फ ज्यादा काम करते हैं बल्कि उन्हें मेहनत आना भी कम दिया जाता है। इस रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि कर्मचारियों को सप्ताह में 75 घंटे से ज्यादा काम कराए जाते हैं।


यह चीज़ें सामान्य तो नहीं लगती, बल्कि यह साफ तौर पर गैर कानूनी भी है। कंपनी के लिए इतने घंटे काम करना, मानवाधिकार कानून का उल्लंघन भी करता है। चीन में जो भी कर्मचारियों को द्वारा बताया गया वह शोषण का चरम रूप कहा जा सकता है। इस तरह के अपराधों के बारे में चीन का रवैया दुनिया के सामने रखा जाना जरूरी है। यूरोप और अमेरिका में जहां कपड़ो का इस्तेमाल किया जाता है ,वहां के लोगों को भी यह जानना होगा कि उनके द्वारा खरीदे गए कपड़ों का उत्पादन किन खराब हालातो में होता है। खास करके ऐसे कंपनी में जहां पर लोगों से जबरदस्ती काम कराए जाते हों।


अगर भारत के संदर्भ में दिग्गज कंपनियों को अध्यक्ष और सीईओ चीन के इस तरह के मानसिकता को आदर्श के रूप में देखते हैं तो उन्हें अपनी सोच पर फिर से विचार करना होगा। क्या चीन में जो हो रहा है उसे वह भारत के संदर्भ में भी लागू करना चाहते हैं? यह एक शब्द और प्रगतिशील समाज के लिए कहीं से भी जायज नहीं है। हालांकि भारत में कई ऐसी दिग्गज कंपनियों के मालिक हैं जो कर्मचारियों की 70 और 90 घंटे काम कराए जाने के खिलाफ भी हैं।


अगर मेरी यह लेख आप लोगों को अच्छी लगी तो इसे ज्यादा से ज्यादा युवाओं तक जरूर पहुंचाएं। चीन के कंपनियों के बारे में यह जानकारी आपको कैसी लगी आप कमेंट कर सकते हैं।

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