Delhi EXIT POLLS 2025 : एग्जिट पोल का दावा या इतिहास का दोहराव?
नई दिल्ली, 6 फरवरी 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। समाचार चैनलों द्वारा घोषित नतीजों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 27 वर्षों के बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी कर सकती है, जबकि मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को हार का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि, इन अनुमानों के साथ ही एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है: क्या एग्जिट पोल एक बार फिर अपनी विश्वसनीयता खोएंगे?
एग्जिट पोल का दावा: भाजपा की बढ़त, आप पिछड़ी
चुनावी सर्वेक्षण एजेंसियों ने भाजपा को 35 से लेकर 60 सीटें तक दी हैं, जबकि आप के लिए यह आँकड़ा 10 से 37 के बीच घूम रहा है। 70 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 36 सीटें चाहिए।
- मैट्रिज एवं ओपिरवॉन: 46% वोट शेयर के साथ भाजपा को 35-40 सीटें, आप को 44% वोट के साथ 32-37 सीटें।
- पीपुल्स इनसाइट: भाजपा 40-44, आप 25-29।
- पी-मार्क: भाजपा 39-49, आप 21-31।
- चाणक्य स्ट्रैटेजीज: भाजपा 39-44, आप 25-28।
- पीपुल्स पल्स: भाजपा को 51-60 सीटों की बड़ी भविष्यवाणी, जबकि आप सिमट सकती है 10-19 पर।
कांग्रेस, जो 2015 और 2020 में शून्य पर सिमट गई थी, इस बार अधिकतम तीन सीटों का ही दावेदार बताई जा रही है।
इतिहास की याद: एग्जिट पोल अक्सर गलत क्यों?
2015 और 2020 के चुनावों में भी एग्जिट पोल्स ने आप की जीत तो भविष्यवाणी की थी, लेकिन उसकी “भारी बहुमत” को कम आँका। 2015 में आप ने 67 सीटें जीतीं, जबकि 2020 में 62। एजेंसियों ने दोनों बार आप को 40-55 सीटें ही दी थीं। इसी तरह, 2019 लोकसभा चुनाव में भी कई एग्जिट पोल्स वास्तविक नतीजों से अलग रहे।
विशेषज्ञ मानते हैं कि एग्जिट पोल्स की सीमाएँ हैं:
- नमूना आकार और विविधता: सर्वेक्षण अक्सर शहरी-ग्रामीण या जनसांख्यिकीय समूहों को पूरी तरह कवर नहीं करते।
- वोट शेयर vs सीटें: उच्च वोट शेयर का मतलन सीटों में बहुमत नहीं होता (जैसे, 2015 में आप को 54.3% वोट मिले, जो 67 सीटों में तब्दील हुए)।
- अंतिम समय का मतदान बदलाव: मतदाता अक्सर एग्जिट पोल के बाद अपना निर्णय बदलते हैं।
केंद्रीय बजट का प्रभाव: क्या मध्यम वर्ग को लुभा पाएगी भाजपा?
एग्जिट पोल के पक्ष में एक तर्क यह दिया जा रहा है कि केंद्र सरकार के 1 फरवरी के बजट ने मध्यम वर्ग को लक्षित कर दिल्ली के चुनावी समीकरण बदल दिए हैं। दिल्ली की लगभग 50% आबादी मध्यम वर्ग या वेतनभोगी है, जिन्हें नई कर छूट (जैसे इनकम टैक्स स्लैब में राहत) से सीधा लाभ मिला है।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था, “दिल्ली में सरकारी कर्मचारी, एमएसएमई और व्यापारी बड़ी संख्या में हैं। बजट से हर वर्ग को फायदा होगा।” विश्लेषकों का मानना है कि यह घोषणा भाजपा को शहरी मतदाताओं, खासकर सेवा क्षेत्र और निजी कंपनी कर्मचारियों के बीच समर्थन बढ़ा सकती है।
आप के पक्ष में तर्क: स्थानीय शासन और सुविधाओं पर ज़ोर
आप की रणनीति हमेशा से “स्कूल-क्लिनिक-बिजली-पानी” जैसी जमीनी समस्याओं पर केंद्रित रही है। 2020 के चुनाव में, उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार को प्रमुख मुद्दा बनाया था। इस बार भी, आप ने मुफ्त बिजली-पानी, महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा जैसे वादों को दोहराया है।
राजनीतिक टिप्पणीकार शुभ्रा गुप्ता कहती हैं, “दिल्ली के मतदाता राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों में अंतर करते हैं। 2019 लोकसभा में भाजपा ने सभी 7 सीटें जीतीं, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में आप ने 62 सीटें लीं। मतदाता केंद्र में एक पार्टी और राज्य में दूसरी को चुन सकते हैं।”
कांग्रेस की भूमिका: क्या बनेगी ‘स्पॉइलर’?
कांग्रेस, जो 1998 से दिल्ली में सत्ता से बाहर है, इस बार भी मुकाबले से गायब नज़र आई। हालाँकि, कुछ पूर्वी दिल्ली और अप्रवासी बहुल इलाकों में उसके प्रदर्शन से भाजपा-आप के बीच वोटों का बँटवारा हो सकता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से किसी एक पक्ष को फायदा पहुँचाएगा।
निष्कर्ष: अनिश्चितता का दौर
एग्जिट पोल्स के विरोधाभासी आँकड़े और उनका इतिहास बताते हैं कि दिल्ली के नतीजे अभी ‘खुले’ हैं। भाजपा की रणनीति राष्ट्रवाद और केंद्र की योजनाओं पर टिकी है, जबकि आप स्थानीय विकास के मॉडल को बेच रही है। मध्यम वर्ग का झुकाव, युवाओं का रुझान, और महिला मतदाताओं की प्राथमिकताएँ निर्णायक होंगी।
11 फरवरी को मतगणना होगी। क्या भाजपा का “दिल्ली पलटवार” सफल होगा, या आप एक बार फिर एग्जिट पोल्स को गलत साबित करेगी? दिल्ली की जनता ही इस सवाल का अंतिम जवाब देगी।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और दिल्ली की चुनावी राजनीति पर नज़र रखते हैं।)