Indian Rupee at historic low against US Dollar, may cross ₹90!
भारतीय रुपया लगातार गिरावट के साथ नए रिकॉर्ड स्तर को छू रहा है। पहली बार इतिहास में डॉलर के मुकाबले रुपया 87 रुपये के स्तर को पार कर चुका है, और विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो आने वाले समय में यह ₹90 प्रति डॉलर के स्तर को भी तोड़ सकता है। यह गिरावट केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के प्रभाव में वैश्विक स्तर पर कई मुद्राएं डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं।
ट्रंप की नीतियों ने बढ़ाई चिंता
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भारतीय रुपये के ₹90 प्रति डॉलर तक गिरने की आशंका जताई गई थी। हालांकि, ट्रंप द्वारा भारत पर प्रत्यक्ष रूप से कोई टैरिफ नहीं लगाया गया, लेकिन चीन, मेक्सिको और कनाडा जैसे देशों पर लगाए गए व्यापारिक प्रतिबंधों का असर वैश्विक मुद्रा बाजारों पर पड़ा। इन देशों की मुद्राएं—चीनी युआन, मैक्सिकन पेसो, और कैनेडियन डॉलर—पिछले कुछ महीनों में डॉलर के मुकाबले क्रमशः 8-10% तक गिर चुकी हैं। कनाडा का डॉलर तो 2003 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।
भारत के लिए चिंता के कारण
भारत की चिंता इसलिए अधिक है क्योंकि रुपये की गिरावट के साथ-साथ देश में महंगाई दर (5.22%) भी चिंताजनक बनी हुई है। वैश्विक मानकों के अनुसार, यह दर अमेरिका (3.7%), यूके (2.5%), या जापान (0.1%) की तुलना में काफी अधिक है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि महंगाई और रुपये की गिरावट एक साथ जारी रही, तो आम नागरिकों पर “डबल झटका” पड़ सकता है: एक ओर उनकी बचत की क्रय शक्ति घटेगी, तो दूसरी ओर दैनिक उपभोग की वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी।
ऐतिहासिक संदर्भ: 5 साल में रुपये का सफर
- 2014: रुपया डॉलर के मुकाबले 61 रुपये के स्तर पर था।
- 2020: यह 71 रुपये तक पहुंचा।
- 2023: अब यह 87 रुपये को पार कर चुका है।
एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि ट्रंप जैसी नीतियां भारत पर लागू होती हैं, तो रुपया ₹90 तक गिर सकता है। इससे आयात महंगा होगा, जिसका सीधा असर पेट्रोल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और दवाओं जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा।
वैश्विक मुद्राओं पर मंडराता संकट
- कनाडा: कैनेडियन डॉलर ने 22 वर्षों का निचला स्तर छुआ है। सोशल मीडिया पर कनाडाई नागरिक “मेड इन कनाडा” उत्पादों को खरीदने की अपील कर रहे हैं।
- मेक्सिको: पेसो में गिरावट के बाद सरकार ने नागरिकों से घरेलू उत्पादों को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है।
- चीन: युआन में मामूली गिरावट के बावजूद, देश की निर्यात नीतियां प्रभावित हुई हैं।
भारत की चुनौतियां और संभावित समाधान
- ब्याज दरों में समन्वय: भारत में उच्च ब्याज दरें (7%) विदेशी निवेशकों को आकर्षित करती हैं, लेकिन इससे रुपये की गिरावट का दबाव भी बढ़ता है।
- निर्यात बढ़ाना: निर्यात को प्रोत्साहन देकर व्यापार घाटे को कम किया जा सकता है।
- इन्फ्लेशन नियंत्रण: महंगाई दर को 4% तक लाने से आम जनता पर दबाव कम होगा।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि डॉलर का मजबूत होना एक वैश्विक प्रवृत्ति है। डॉलर इंडेक्स में तेजी के कारण अधिकांश मुद्राएं कमजोर हुई हैं। हालांकि, भारत को दीर्घकालिक नीतियों पर ध्यान देना होगा, जैसे उत्पादन क्षमता बढ़ाना (मेक इन इंडिया) और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना।
सतर्कता जरूरी
भारतीय रुपये की गिरावट केवल एक आर्थिक संकेतक नहीं है, बल्कि यह वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक परिवर्तनों का प्रतिबिंब भी है। सरकार और रिजर्व बैंक को मुद्रा बाजार में स्थिरता बनाए रखने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे। आम नागरिकों के लिए सलाह है कि वे निवेश के विकल्पों को विविधतापूर्ण बनाएं और डॉलर-आधारित संपत्तियों में होल्डिंग्स बढ़ाएं।
भविष्य की दृष्टि: यदि अमेरिका भारत पर व्यापार प्रतिबंध लगाता है, तो रुपया ₹100 प्रति डॉलर के स्तर को भी छू सकता है। ऐसे में, सरकार के लिए विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करना और निर्यातकों को प्रोत्साहन देना अत्यावश्यक होगा।