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सिंधु जल संधि विवाद: भारत की बड़ी जीत, पाकिस्तान को झटका।

Indus Water Treaty dispute: Big victory for India shock to Pakistan

भारत का बड़ा कदम: सिंधु जल संधि की समीक्षा
64 साल पुरानी सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से विवाद जारी है। हाल ही में भारत ने इस संधि की समीक्षा के लिए पाकिस्तान को नोटिस भेजा। इसके बाद, विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल विशेषज्ञ ने विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए भारत के पक्ष में निर्णय दिया।

यह न केवल भारत के कूटनीतिक प्रयासों की बड़ी सफलता है, बल्कि पाकिस्तान के लिए यह एक कड़ा झटका भी है। विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि भारत की जल विद्युत परियोजनाएं सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं करती हैं।


क्या है सिंधु जल संधि?

19 सितंबर 1960 को कराची में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

संधि के प्रमुख बिंदु:

  1. भारत को सतलुज, व्यास और रावी (पूर्वी नदियों) का नियंत्रण मिला।
  2. पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब (पश्चिमी नदियों) का अधिकतर पानी इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया।
  3. संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से 9 साल की बातचीत के बाद लागू हुई।

भारत का सिंधु जल संधि में बदलाव का आग्रह

भारत ने जनवरी 2023 और सितंबर 2024 में पाकिस्तान को इस संधि में बदलाव के लिए नोटिस भेजा। इसका मुख्य कारण था जम्मू-कश्मीर में भारत की जल विद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्ति।

अनुच्छेद 12(3) के तहत संधि में संशोधन केवल दोनों देशों की सहमति से हो सकता है।


भारत की प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएं

  1. किशनगंगा परियोजना:
    • 330 मेगावाट की यह परियोजना झेलम नदी की सहायक नदी पर स्थित है।
  2. रातले परियोजना:
    • 850 मेगावाट की यह परियोजना चेनाब नदी पर आधारित है।

पाकिस्तान ने इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, भारत ने स्पष्ट कर दिया कि ये परियोजनाएं नदी के मूल प्रवाह को बाधित नहीं करेंगी।


न्यूट्रल विशेषज्ञ का निर्णय: भारत के पक्ष में

पाकिस्तान ने 2015 में न्यूट्रल विशेषज्ञों की जांच की मांग की थी, लेकिन 2016 में खुद ही इस प्रक्रिया को रोककर मामला स्थायी न्यायाधिकरण (PCA) में ले जाने का प्रयास किया।

विशेषज्ञों की रिपोर्ट में पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा गया कि ये विरोध केवल राजनीतिक है। यह भारत की मजबूत कूटनीति और जल संसाधनों के उपयोग में संप्रभुता का प्रमाण है।


पाकिस्तान के लिए तगड़ा झटका क्यों?


संधि में बदलाव की आवश्यकता

61 साल पुरानी यह संधि वर्तमान परिस्थितियों में अप्रासंगिक हो चुकी है।

भारत के कारण:

  1. जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना।
  2. स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाना।
  3. पाकिस्तान का नकारात्मक रवैया, जो संधि के क्रियान्वयन में बाधा डालता है।

भारत की कूटनीतिक जीत

सिंधु जल संधि पर भारत की हालिया जीत उसके कूटनीतिक कौशल और जल संसाधनों के उपयोग में संप्रभुता को दर्शाती है। पाकिस्तान को अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा।

यह जीत केवल एक जल विवाद का समाधान नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की मजबूत छवि का प्रमाण भी है।

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