भारतीय वैज्ञानिकों का धमाका : अमेरिका और फ्रांस का इंकार, फिर भी AMCA का होगा सपना साकार।

मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपने में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।

भारत के वैज्ञानिकों की मेहनत और लगाने आखिरकार ऐसा दिन दिखा दिया जब पूरी दुनिया हैरान हो गई। भारत के डीआरडीओ यानी कि डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर ली। मेहनत और कड़ी चुनौतियों का सामना करने के बाद डीआरडीओ ने अपना कावेरी इंजन रूस में सफल फ्लाइट टेस्टिंग के लिए भेज दिया है। दरअसल भारत ने कावेरी इंजन प्रोजेक्ट बनाने की शुरुआत 1989 में की थी। उद्देश्य था फाइटर जेट में भारत को आत्मनिर्भर बनाना। ताकि फाइटर जेट्स और एयरक्राफ्ट्स के लिए भारत को विदेशी इंजनों पर निर्भर न रहना पड़े।

शुरुआती सालों में कावेरी इंजन रहा असफल

शुरुआती सालों में यह इंजन अपने अपेक्षित थ्रस्ट 70 से 90 kg न्यूटन फोर्स उत्पन्न करने में असफल रहा। इस वीफलता के कारण भारत को अपने लाखों लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिकी और यूरोपीय इंजनों पर निर्भर रहना पड़ा। हाल ही में भारत सरकार ने कावेरी इंजन को फ्लाइट टेस्टिंग के लिए हरी झंडी दे दी। रूस के लिए किया जा रहा इल्यूसिन 276 विमान का उपयोग कावेरी इंजन कि फ्लाइट टेस्टिंग के लिए किया जाएगा। यह विमान चार इंजनों से लैस है इनमें से एक इंजन को हटाकर कावेरी इंजन फिट किया गया है। इस टेस्ट में कावेरी इंजन को करो कड़ी चुनौतियों से गुजरना होगा और लगभग 70 घंटे तक 4000 फीट की ऊंचाई पर चलाया जाएगा।

अमेरिका और यूरोपीय देशों ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने से किया इनकार।

अमेरिका और यूरोपीय देशों के द्वारा भारत को इंजन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने में आनाकानी करते रहे हैं। कावेरी इंजन की सफलता के बाद भारत को उन देशों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भारत में पहले ही कावेरी इंजन की 140 घंटे की ग्राउंड टेस्टिंग तथा 75 घंटे की एटीट्यूड टेस्टिंग की जा चुकी है। अब रूस के द्वारा इस विमान को टेस्ट किया जा रहा है ।70 घंटे के उड़ान की नतीजे पर कड़ी निगरानी की जा रही है। कावेरी इंजन के ऊंचाई और तापमान के बदलते स्तर पर विमान के प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा। अगर यह टेस्टिंग सफल रहती है तो कावेरी इंजन को भविष्य में भारत के लड़ाकू विमान में इस्तेमाल किया जा सकेगा। कावेरी इंजन भारत के पांचवी पीढ़ी की लड़ाकू विमान AMCA एडवांस्ड मीडियम कॉन्वेंट एयरक्राफ्ट के लिए मजबूत आधारशिला बनकर तैयार होगी।

आत्मनिर्भर बनेगा भारत

डीआरडीओ की उपलब्धि भारत को दुनिया की अन्य मैन्युफैक्चरिंग दिग्गज देश के श्रेणी में लाकर खड़ा कर देगी। डीआरडीओ की इस सफलता ने पश्चिमी देशों को भी चौंका दिया है। जो देश भारत को इंजन तकनीक देने से इनकार कर रहे थे, अब उनकी मोनोपोली टूटने वाली है। डीआरडीओ के इस प्रयास के बाद भारत को फाइटर जेट और एयरक्राफ्ट के लिए आत्मनिर्भर बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। भविष्य में डीआरडीओ कावेरी इंजन का और भी ताकतवर वेरिएंट यानी 130 किलो न्यूटन थ्रस्ट बनाने पर भी काम कर रहा है। जज्बा हो तो कुछ भी संभव नहीं है यह डीआरडीओ की प्रयासों ने साबित कर दिया है। डीआरडीओ की इस उपलब्धि पर सबको गर्व है।


DRDO के तरफ से आई दूसरी सबसे बड़ी खबर
डीआरडीओ ने भारत को खुश होने की दूसरी वजह भी दे दी है। डीआरडीओ के द्वारा भारत में 130 किलो न्यूटन थ्रस्ट रखने वाले फाइटर जेट इंजन की टेस्टिंग फैसिलिटी को तैयार कर लिया गया है। डीआरडीओ की विशेष लैबोरेट्री GTRE (gas turbine research establishment) ने एलान किया है, कि 130 किलो न्यूटन थ्रर्स्ट टेस्ट बेड फैसिलिटी बेंगलुरु के राजनकुंटे में जल्द ही तैयार होने वाली है। यहां डबल इंजन वाले लड़ाकू विमान की तकनीक को टेस्ट किया जा सकेगा।


लड़ाकू विमान की टेस्टिंग फैसिलिटी अक्टूबर तक होगा तैयार।
भारत वासियों के लिए आई दूसरी खबर भी बहुत बड़ी है क्योंकि आज से 2 साल पहले यह बात निकाल कर आई थी की कावेरी इंजन के को बनाने में इसलिए देरी हो रहा था क्योंकि इंजन को टेस्ट करने की फैसिलिटी भारत में उपलब्ध नहीं है। इसके लिए अबतक हम लोग दूसरे देशों जैसे USA, रूस या फिर फ्रांस पर निर्भर थे। लेकिन हमारे वैज्ञानिकों के कड़े प्रयासों का नतीजा है कि यह स्थिति अब बदलने वाली है। अब यह जानकारी भी आ चुकी है की इस टेस्टिंग फैसिलिटी में 130 केजी न्यूटन फर्स्ट वाले AMCA लड़ाकू विमान की भी टेस्टिंग की जा सकती है। आपको बताते चले कि AMKA भारत की पांचवीं पीढ़ी की स्टेल्थ आधारित लड़ाकू विमान है। इस AMCA में लगने वाले इंजन जो लगभग 110 से 120 KG न्यूटन थ्रस्ट होने वाली है उसकी भी टेस्टिंग बेंगलुरु में ही हो पाएगी। AMCA लड़ाकू विमान को पिछले वर्ष 2024 में भारत सरकार के द्वारा अप्रूवल दे दिया गया है जो अनुमानित राशि लगभग 15 000 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है।

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