नवजात बच्ची को चमत्कारिक रूप से बचाया गया: गला काटकर कूड़ेदान में फेंके जाने के बाद भोपाल के अस्पताल ने बचाई जान !

नवजात बच्ची को चमत्कारिक रूप से बचाया गया: गला काटकर कूड़ेदान में फेंके जाने के बाद भोपाल के अस्पताल ने बचाई जान !


मध्य प्रदेश में शिशु परित्याग की चौंकाने वाली घटना, पीहू नाम की नवजात ने एक महीने की जंग जीतकर रचा इतिहास

भोपाल: जन्म के तुरंत बाद गला काटकर कूड़ेदान में फेंक दी गई नवजात बच्ची आज जिंदगी की मिसाल बन गई है। मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में घटी इस हैरतअंगेज घटना में बच्ची को कमला नेहरू अस्पताल, भोपाल के डॉक्टरों ने न सिर्फ बचाया, बल्कि उसे नया जीवन दिया। पुलिस के मुताबिक, बच्ची की दादी ने उसका गला काट दिया था और उसे कूड़े के ढेर में छोड़ दिया था। घटना के बाद माँ और दादी को गिरफ्तार कर लिया गया है।

कैसे बची नवजात बच्ची पीहू?

11 जनवरी की सुबह राजगढ़ के एक कूड़ेदान के पास से राहगीरों ने नवजात के रोने की आवाज सुनी। जब उन्होंने देखा, तो खून से लथपथ एक नवजात बच्ची गंभीर हालत में पड़ी थी। उसकी गर्दन पर गहरा घाव था और खून बह रहा था। स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। बच्ची को पहले राजगढ़ के जिला अस्पताल ले जाया गया, लेकिन गंभीर हालत देखकर उसे भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल रेफर किया गया।

डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की गर्दन की नसें और धमनियाँ चमत्कारिक ढंग से बची हुई थीं। “हमने उसकी सर्जरी करके घावों पर टांके लगाए और रक्त वाहिकाओं की मरम्मत की। उसे एक महीने तक लगातार केयर की जरूरत थी,” अस्पताल के डॉ. धीरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया। शुक्रवार को जब पीहू को डिस्चार्ज किया गया, तो अस्पताल का स्टाफ भावुक हो उठा।

माँ-दादी पर हत्या का आरोप

पुलिस जाँच में पता चला कि पीहू का जन्म घर पर हुआ था। परिवार ने नवजात को लड़का होने की उम्मीद की थी, लेकिन लड़की पैदा होने पर दादी ने उसका गला काट दिया और कूड़ेदान में फेंक दिया। माँ ने इस अपराध में दादी का साथ दिया। दोनों पर हत्या के प्रयास और शिशु परित्याग का मुकदमा दर्ज किया गया है।

मध्य प्रदेश: नवजात बच्चों को छोड़ने में सबसे आगे

यह घटना मध्य प्रदेश में बच्चों को फेंके जाने की चिंताजनक तस्वीर को उजागर करती है। एनसीआरबी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पिछले साल 175 नवजातों को छोड़ दिया गया, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है। इनमें से अधिकांश बच्चे कुपोषण, ठंड या जंगली जानवरों का शिकार हो जाते हैं। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया, “यह पिछले कुछ महीनों में हमारा तीसरा केस है। हमने इन बच्चियों के नाम खुशी और पीहू रखे हैं।”

क्यों बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएँ?

समाजशास्त्री डॉ. प्रीति सिंह के मुताबिक, “लिंगभेद, गरीबी और अशिक्षा ऐसे अपराधों की मुख्य वजह हैं। कई परिवार लड़की के जन्म को बोझ मानते हैं और कन्या भ्रूण हत्या या शिशु हत्या का रास्ता चुनते हैं।” राज्य सरकार ने कन्या उद्धार योजना और सुरक्षित शिशु गृह जैसी पहलें शुरू की हैं, लेकिन जागरूकता की कमी अब भी बड़ी चुनौती है।

पीहू का नया जीवन

पीहू को अब राजगढ़ के एक आश्रय गृह में रखा गया है। बाल कल्याण समिति की निगरानी में उसकी देखभाल की जाएगी। डॉक्टरों का कहना है कि उसे भविष्य में किसी तरह की शारीरिक समस्या नहीं होगी। “वह सामान्य बच्ची की तरह जीवन जिएगी,” डॉ. श्रीवास्तव ने आश्वासन दिया।

समाज के लिए सवाल

पीहू की कहानी सवाल खड़े करती है: क्या समाज में नारी जीवन की कीमत इतनी कम है? क्यों आज भी हज़ारों लड़कियाँ जन्म से पहले या बाद में मार दी जाती हैं? इस घटना ने सोशल मीडिया पर भी चर्चा छेड़ दी है। यूजर्स ने सख्त कानून और जागरूकता अभियानों की मांग की है।

नोट: अगर आप ऐसे परित्यक्त बच्चों की मदद करना चाहते हैं, तो स्थानीय बाल आश्रय गृहों से संपर्क करें या सरकारी हेल्पलाइन नंबर 1098 पर सूचना दें।

यह खबर मध्य प्रदेश में बाल सुरक्षा और महिला अधिकारों पर गंभीर बहस छेड़ती है। पीहू का संघर्ष हमें याद दिलाता है कि जीवन की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है। जरूरत है कि समाज ऐसे अपराधों के खिलाफ आवाज बुलंद करे और लड़कियों को बचाने के लिए आगे आए।

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