हैदराबाद (24/02/2025):
तेलंगाना के नलगोंडा जिले के एक छोटे से गाँव में रहने वाले दुशार्ला सत्यनारायण ने साबित कर दिया है कि इंसान चाहे तो बंजर जमीन को भी हरे-भरे जंगल में तब्दील कर सकता है। पिछले 15 सालों से, सत्यनारायण अपनी 70 एकड़ पुश्तैनी जमीन पर प्राकृतिक वन लौटाने के अभियान में जुटे हैं। आज यह भूमि न केवल 20,000 से अधिक पेड़-पौधों का घर है, बल्कि यहाँ दुर्लभ वन्यजीवों और पक्षियों की करीब 150 प्रजातियाँ भी बसर करती हैं। पर्यावरण संरक्षण की यह मिसाल पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई है।
विरासत की जमीन पर ‘हरित क्रांति’ की शुरुआत
सत्यनारायण के पूर्वज कृषि और पशुपालन से जुड़े थे, लेकिन समय के साथ जमीन बंजर होने लगी। 2009 में, जब उन्होंने इस भूमि की जिम्मेदारी संभाली, तो यहाँ न तो पर्याप्त वनस्पति थी और न ही जल स्रोत। “मैंने सोचा, क्यों न इस जमीन को प्रकृति को लौटा दिया जाए?” सत्यनारायण बताते हैं। उन्होंने केमिकल फर्टिलाइजर्स और मशीनीकृत खेती को त्यागकर प्राकृतिक तरीकों से जंगल विकसित करने का फैसला लिया। शुरुआत में गाँव वालों ने उनका मजाक उड़ाया, लेकिन आज यही लोग उनके सबसे बड़े प्रशंसक हैं।
कैसे बदला इस जंगल का नक्शा?
- जैविक तरीकों पर भरोसा: सत्यनारायण ने वर्मीकम्पोस्ट और गोबर खाद का इस्तेमाल कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई।
- स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता: नीम, पीपल, बरगद, आँवला और बाँस जैसे देशी पेड़ लगाए, जो कम पानी में भी फलते-फूलते हैं।
- जल संरक्षण: वर्षा जल को संचित करने के लिए 8 छोटे तालाब बनवाए, जिससे भूजल स्तर में 12 फीट की बढ़ोतरी हुई।
- वन्यजीवों के लिए सुरक्षित ठिकाना: शिकारियों से बचाने के लिए ग्रामीणों के साथ मिलकर पहरेदारी की व्यवस्था की।
जैवविविधता का खजाना: यहाँ मिलती हैं ये दुर्लभ प्रजातियाँ
- वनस्पति: सफेद चंदन, रुद्राक्ष, कदंब, और औषधीय गुण वाली 50 से अधिक जड़ी-बूटियाँ।
- पक्षी: भारतीय मोर, हॉर्नबिल, गिद्ध, और प्रवासी पक्षी साइबेरियन क्रेन।
- जीव-जंतु: नीलगाय, जंगली बिल्ली, लकड़बग्घा, और लुप्तप्राय ग्रे इंडियन लंगूर।
- सरीसृप: कोबरा और इंडियन रॉक पायथन समेत 15 प्रकार के सांप।
सत्यनारायण के मुताबिक, “जब मैंने पहली बार इस जमीन पर एक हिरण को घूमते देखा, तो समझ गया कि प्रकृति ने मेरा प्रयास स्वीकार कर लिया।”
चुनौतियाँ: शुरुआती दिनों में झेली मुश्किलें
- आर्थिक संकट: जंगल को समर्पित करने के बाद पारिवारिक आय का स्रोत खत्म हो गया। सत्यनारायण ने अपनी बचत खर्च कर दी।
- जलवायु संकट: 2015 और 2018 में सूखे ने 30% पौधों को नुकसान पहुँचाया।
- सामाजिक विरोध: कुछ लोगों ने जमीन पर कब्जे की कोशिश की, लेकिन ग्राम पंचायत के समर्थन से विवाद सुलझा।
गाँव वालों ने बढ़ाया साथ, अब यह जंगल बना ‘जीवनदाता’
आज यह वन केवल पशु-पक्षियों का ही नहीं, बल्कि ग्रामीणों का भी सहारा है।
- रोजगार: 50 से अधिक परिवारों को जैविक खाद और औषधीय पौधों की बिक्री से आमदनी।
- शिक्षा: स्थानीय स्कूलों के बच्चे यहाँ ‘प्रकृति कक्षाएँ’ लेते हैं।
- आध्यात्मिक पहलू: गाँव वाले इस जंगल को ‘देवरायला वन’ (देवताओं का वन) कहते हैं और यहाँ नियमित पूजा-पाठ करते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
- 2022 में, सत्यनारायण को भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ पुरस्कार के लिए नामांकित किया।
- ‘ग्रीन टेलंगाना’ अभियान में उनके मॉडल को राज्य सरकार ने अपनाया।
- विश्व वन्यजीव कोष (WWF) ने इस परियोजना को ‘जैवविविधता हॉटस्पॉट’ घोषित किया।
भविष्य की योजनाएँ: और बड़ा करना चाहते हैं सपना
सत्यनारायण का लक्ष्य अगले 5 सालों में इस जंगल को 100 एकड़ तक विस्तारित करना है। इसके लिए वे:
- सोलर एनर्जी: जंगल में सौर ऊर्जा से चलने वाले कैमरे लगाकर वन्यजीवों की निगरानी करना चाहते हैं।
- इको-टूरिज्म: प्रकृति प्रेमियों के लिए हट्स बनाने की योजना है, ताकि लोग यहाँ आकर प्रकृति के करीब रह सकें।
- शोध केंद्र: विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर जैवविविधता पर रिसर्च को बढ़ावा देना चाहते हैं।
सत्यनारायण का संदेश: “प्रकृति हमें बिना कुछ लिए सब कुछ देती है”
अपने संघर्षों के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं, “पेड़ लगाना सिर्फ मिट्टी में बीज डालना नहीं, बल्कि भविष्य के लिए प्रार्थना करना है। हर व्यक्ति अपने स्तर पर एक पौधा लगाए, तो धरती फिर से स्वर्ग बन सकती है।”
एक व्यक्ति का समर्पण, पूरे समाज की विरासत
दुशार्ला सत्यनारायण की यह यात्रा सिखाती है कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारी नीतियों का विषय नहीं, बल्कि हर नागरिक का नैतिक दायित्व है। उनका जंगल न सिर्फ पारिस्थितिकी संतुलन बहाल कर रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सबक भी दे रहा है: “धरती को बचाने के लिए उसे वापस उसी रूप में लौटाओ, जिसमें तुमने पाया था।”
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