माना जाता है कि भारत सिद्ध संतों की पवित्र धरती है। भारतवर्ष में ऐसे अनेक संत आज भी निवास करते हैं जिन्होंने कठिन तपस्या कर विचित्र सिद्धियां प्राप्त कर ली है। वहीं कुछ ऐसे भी संत है जो अपने सादा जीवन और सहज ज्ञान से पूरी मानव जाति के लिए मिसाल बन गए।
यह लेख वैसे ही एक सरल और सहज संत श्री सिया रामदास बाबा (siyaram baba) की है। जिन्होंने 11 दिसंबर 2024, मोक्षदा एकादशी के दिन भट्टयान आश्रम में अपने शरीर का त्याग किया। बाबा के अंतिम दर्शन के लिए बाबा के भक्तो का सैलाब उमड़ पड़ा । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी बाबा की अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे।
10 वर्षों तक खड़े होकर किए थे रामायण का पाठ।
पवित्र नर्मदा नदी के किनारे संत श्री सियाराम बाबा (siyaram baba) जी ने खड़े होकर 10 वर्षों की कठिन तपस्या की थी। शिष्य बतलातें हैं की वहां पर एक विशाल बरगद का पेड़ है, जिसके नीचे संत श्री सियाराम बाबा जी ने 10 वर्षों तक खड़े होकर रामायण का पाठ किया। एक बार की बात है जब नर्मदा नदी का जलस्तर इतना बढ़ गया कि वह बाबा की कमर के ऊपर तक पानी भर गया उनके शिष्यों ने वहां से है जाने का आग्रह किया लेकिन बाबा ने इसे अपना कठिन तपस्या बतलाकर उसे जगह से हटने से इनकार कर दिए।बाबा का कहना था की मां नर्मदा उन पर कृपा करेंगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही। नर्मदा जी का जलस्तर कम हुआ और बाबा का तपस्या 10 सालों तक चला।
श्री हनुमान भक्त थे बाबा-
संत श्री सियाराम बाबा (siyaram baba) हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। भक्ति भी कुछ ऐसी की अपना पूरा जीवन हनुमान जी की सेवा और श्री रामचरितमानस पाठ का नियमित अध्ययन करने में खाप दिए। बाबा की भक्त जब भी कोई सवाल पूछते बाबा रामचरितमानस का उदाहरण देकर भक्तों का मार्गदर्शन करते थे। बाबा के उम्र के अंतिम पड़ाव में भी चेहरे का तेज देखते हीं बनता था । सरल शब्दों में जीवन के बड़े-बड़े रहस्य सुलझाने की बहुत अनोखी कला थी बाबा जी में।
वस्त्र के नाम पर सिर्फ लंगोट धारण करते थे।
संत श्री सियाराम (siyaram baba) बाबा ने योग साधना से अपने शरीर को ऐसा बना लिया था की, सभी मौसम में बाबा सिर्फ एक लंगोट ही धारण करते थे। उन्होंने अपने शरीर को प्रकृति के अनुकूल बना लिया था। चाहे मौसम कितना भी विपरीत हो बाबा पर इसका कोई प्रभाव न पड़ता था।
दान में ₹10 से ज्यादा नहीं लेते थे-(siyaram baba)
बाबा एक सिद्ध संत थे उन्हें अपने लिए विशेष रूप से किसी चीज की चाह नहीं थी। आने वाले भक्त से भेंट स्वरूप सिर्फ ₹10 दान लेते थे बाकी की धनराशि वापस कर देते थे। दान में मिले हुए सारे पैसे नर्मदा के किनारे बने हुए घाटों के मरम्मत एवं विभिन्न धार्मिक कार्यों में लगा देते थे।
ऐसे दिव्य और महान संत का जाना पूरे भारत वर्ष के लिए अभूतपूर्व क्षति है, संत समाज और बाबा की भक्तों में शोक की लहर है। ऐसी महान और दिव्य संत को शत-शत नमन।