दुखद घटना का सारांश
15 फरवरी, 2024 को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में दो केरल निवासियों—43 वर्षीय पी.वी. मुरलीधरन और 24 वर्षीय अरंगीलोट्टू मुहम्मद रिनाश—को हत्या के आरोप में फांसी दे दी गई। यह घटना भारतीय प्रवासी मजदूरों के लिए विदेशों में कानूनी चुनौतियों और सीमित सहायता तंत्र की गंभीर समस्या को उजागर करती है। दोनों के परिवारों ने अंतिम समय तक कूटनीतिक और कानूनी हस्तक्षेप की गुहार लगाई, लेकिन सभी प्रयास नाकाम रहे।
परिवारों का दर्द: आखिरी फोन और निराशा
फांसी से ठीक एक दिन पहले, मुरलीधरन और रिनाश ने अपने परिवारों से अंतिम बार फोन पर बात की। मुरलीधरन के पिता, केशवन, जो स्वयं यूएई में तीन दशक तक ड्राइवर रहे, के अनुसार, “वह जीवन भर निर्दोष होने का दावा करता रहा, लेकिन न्याय नहीं मिला। आखिरी बार उसकी आवाज़ में डर था… हम सब असहाय थे।”
रिनाश की मां, लैला, के लिए यह झटका और भी बड़ा था। उनके वकील के.ए. लतीफ ने बताया कि रिनाश ने अपनी मां से कहा था, “मुझे बचाओ।” लेकिन आर्थिक तंगी और कानूनी जटिलताओं ने परिवार को लाचार बना दिया।
मुरलीधरन का केस: फुटबॉल की उम्मीदों से जेल तक
मुरलीधरन का सफर केरल के कासरगोड जिले के चीमनी गांव से शुरू हुआ। 20 वर्ष की उम्र में यूएई पहुंचे मुरलीधरन ने अल ऐन में एक विला में सुरक्षा गार्ड की नौकरी शुरू की। फुटबॉल के प्रति उनका जुनून उन्हें स्थानीय क्लब तक ले गया। लेकिन 2009 में एक केरलवासी की हत्या के आरोप में उनकी जिंदगी बदल गई।
आरोपों के अनुसार, मुरलीधरन ने शव को रेगिस्तान में दफनाया था। उनके पिता का दावा है कि अन्य लोग भी शामिल थे, लेकिन मुरलीधरन ने अकेले जिम्मेदारी ली। केशवन के अनुसार, “हर शुक्रवार जेल में मुलाकात होती थी। वह हमेशा उम्मीद करता था… लेकिन पीड़ित परिवार ने माफी देने से इनकार कर दिया।” 15 साल के कारावास के बाद अंततः उन्हें फांसी मिली।
रिनाश की कहानी: सपनों का अंत
कन्नूर के थालास्सेरी का रहने वाला रिनाश 2021 में यूएई में नौकरी की तलाश में गया। एक ट्रैवल एजेंसी में काम शुरू किया, लेकिन कुछ महीनों बाद ही एक विकलांग अरब नागरिक की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। यह मामला उनकी सहकर्मी (हैदराबाद निवासी) के पति से जुड़ा था, जिसे भी सजा हुई।
रिनाश के परिवार और वकीलों ने “ब्लड मनी” (रक्त धन) के जरिए समझौते की कोशिश की। इस्लामिक कानून के तहत, पीड़ित परिवार को मुआवजा देकर दोषी की जान बचाई जा सकती है। लेकिन पीड़ित परिवार ने हर प्रस्ताव को ठुकरा दिया। लतीफ कहते हैं, “हमने राज्य और केंद्र सरकार से मदद मांगी, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला।”
सरकारी प्रयास: कूटनीति की सीमाएं
भारत सरकार और केरल राज्य प्रशासन ने दोनों मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की। विदेश मंत्रालय ने यूएई अधिकारियों से बातचीत की, लेकिन पीड़ित परिवारों की असहमति के कारण कुछ नहीं हो सका। एक अधिकारी के अनुसार, “यूएई का कानून स्पष्ट है। यदि पीड़ित पक्ष माफ नहीं करता, तो सरकार भी कुछ नहीं कर सकती।”
केरल के सामाजिक संगठनों ने सरकार की प्रतिक्रिया को “निष्क्रिय” बताया। मलप्पुरम के एक कार्यकर्ता ने कहा, “यह कूटनीतिक विफलता है। प्रवासी भारतीयों के लिए बेहतर कानूनी सहायता की जरूरत है।”
इस्लामिक कानून और ‘ब्लड मनी’ की भूमिका
यूएई में हत्या के मामलों में शरिया कानून लागू होता है। इसके तहत, पीड़ित परिवार को “दिया” (खून-बहा) या मुआवजा देकर मृत्युदंड टाला जा सकता है। लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों की सहमति जरूरी है। रिनाश के मामले में, पीड़ित के परिजनों ने 5 लाख दिरहम (लगभग 1.1 करोड़ रुपये) की मांग की थी, जिसे रिनाश का परिवार जुटा नहीं सका।
वकील लतीफ के अनुसार, “गरीब परिवारों के लिए यह रकम असंभव थी। सरकार को ऐसे मामलों में आर्थिक मदद की व्यवस्था करनी चाहिए।”
प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा: सबक और सुधार की जरूरत
यूएई में 35 लाख से अधिक भारतीय काम करते हैं, जिनमें केरलवासी बड़ी संख्या में हैं। अक्सर कानूनी जागरूकता की कमी और आर्थिक तंगी उन्हें ऐसे संकट में धकेल देती है। विशेषज्ञों का मानना है कि:
- पूर्व-प्रवासन प्रशिक्षण: विदेश जाने वाले श्रमिकों को कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जाए।
- कानूनी कोष: आपात स्थितियों के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाए।
- त्वरित कूटनीतिक प्रतिक्रिया: ऐसे मामलों में भारतीय दूतावासों को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।
अंतिम संस्कार और अनसुलझे सवाल
दोनों की मृत्यु के बाद, यूएई अधिकारियों ने शवों को स्थानीय रीति-रिवाज के अनुसार दफना दिया। मुरलीधरन के परिवार ने उनके अवशेष वापस लान की गुहार लगाई, लेकिन इजाजत नहीं मिली। केशवन कहते हैं, “उसे घर लाना चाहते थे… यह हमारा अधिकार था।”
रिनाश की मां लैला अब भी न्याय की गुहार लगाती हैं: “वह बेकसूर था। हमें सिस्टम ने धोखा दिया।”
सबक और आगे का रास्ता
यह घटना प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की तात्कालिकता को रेखांकित करती है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने केंद्र सरकार से मजबूत कूटनीतिक प्रोटोकॉल बनाने की मांग की है। साथ ही, प्रवासी संगठनों ने यूएई में कानूनी सहायता केंद्र स्थापित करने का सुझाव दिया है।
यह घटना एक बार फिर प्रवासी भारतीयों के लिए विदेश में कानूनी सहायता की जरूरत को उजागर करती है। प्रवासी कामगारों के लिए मजबूत कानूनी और सामाजिक समर्थन तंत्र की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की परिस्थितियों में उनके लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
इस दुखद घटना ने दो परिवारों को उनके प्रियजनों से हमेशा के लिए दूर कर दिया, लेकिन यह मामला भारत और अन्य देशों के बीच कानूनी सहायता और कूटनीतिक हस्तक्षेप के महत्व को भी रेखांकित करता है।
#केरलवासियों को फांसी