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ISRO आखिर क्यों नहीं है, भारतीय युवाओं की पहली पसंद ?

इसरो अपने सीमित संसाधनों और कम बजट के साथ काम करने के लिए जानी जाती है। कम बजट के बावजूद भी एक के बाद एक देश के लिए, सक्सेसफुल मिशन के रूप में जो बेहतरीन रिजल्ट रिजल्ट देखने को मिल रहे है उसके लिए इसरो और इसरो के सारे वैज्ञानिकों की जितने भी तारीफ की जाए उतनी कम है । परन्तु अभी ISRO के साथ गंभीर परेशानियों खड़ी हो गई है। दरअसल न्यूज़ निकालकर यह आ रही है कि देश के जो सबसे बुद्धिमान या उच्च मानसिक क्षमता वाले युवा है, वह देश के लिए काम करना ही नहीं चाहते। हमें औसत क्षमता वाले लोगों के साथ ही काम करना पड़ रहा है।

इसरो की वर्तमान अध्यक्ष डॉ एस. सोमनाथ सर की एक स्टेटमेंट सामने आई है। उन्होंने कहा कि इसरो की टीम, केंपस प्लेसमेंट के लिए कुछ महीने पहले आईआईटी बॉम्बे गई थी। इसरो को कुछ इंजीनियर स्क्वायर करना था। उन्होंने बताया कि इसरो के लिए कुछ बेहतरीन इंजीनियर की आवश्यकता थी। इसके लिए कुछ महीने पहले IIT से कैंडिडेट्स को चुना जाना था। ऐसा माना जाता है कि आईआईटी में भारत की बेहतरीन उच्च क्षमता वाले इंजीनियर में सबसे टॉप लेवल की ग्रेजुएट होते हैं। उम्मीद थी कि आईआईटी बॉम्बे से बेहतरीन इंजीनियर को चुनकर इसरो में काम करने के लिए उन्हें मौके दिए जाएं ।

इसरो की टीम जब प्लेसमेंट के लिए महाराष्ट्र के आईआईटी बॉम्बे गयी, उस दौरान जब उन्होंने सभी कैंडिडेट्स को इसरो की सैलरी स्ट्रक्चर बताया, तो जितने भी कैंडिडेट्स ने ISRO के प्लेसमेंट के लिए अप्लाई किया था, उनमें से 60% स्टूडेंट सैलरी स्ट्रक्चर देखने के तुरंत बाद ही वहां से वाकआउट कर लिया था। यानी उन्होंने यह प्लेसमेंट कंप्लीट भी नहीं किया। वह सिलेक्ट होते या नहीं होते, वह तो दूसरी बात थी। लेकिन जैसे उन्होंने इसरो का पे स्केल देखा, उन्होंने इंटरव्यू अटेंड नहीं किया।

100 में से 60 स्टूडेंट्स इस समय वर्कआउट कर गए, और यह पहली बार नहीं जब इस तरह की न्यूज़ आयी है।इससे पहले भी यह मुद्दा कई बार उठ चुका है। अब देखा जाए तो आज की डेट में पैसा सबसे ज्यादा मैटर करता है। जब हमने वर्तमान समय में इसरो की सैलरी के ऊपर थोड़ी बहुत खोज की तो हमें पता चला कि इसरो के अध्यक्ष की खुद का वेतन मात्र ढाई से 3 लाख प्रति माह के आसपास है। वहां पर सीनियर एडवाइजर्स उसे सीनियर साइंटिस्ट होते हैं, उनका वेतन भी दो सवा दो लाख प्रति माह के करीब होती है। और बाकी का स्टाफ का वेतन 2 लाख से काफी कम होती है। इसके अलावा जो एंट्री लेवल साइंटिस्ट का एंट्री लेवल इंजीनियर होते हैं, उनका वेतन स्टार्ट होती है 70,000 प्रति माह के आसपास है। लेकिन 60,000 से 70,000 प्रति माह से लेकर ढाई से 3 लाख प्रति माह का सफर भी 10-15 या फिर 20 सालों में जाकर पूरा होता है।

जबकि प्राइवेट कंपनी आज की डेट में आईआईटी ग्रैजुएट को लाखों करोड़ का पैकेज स्टार्टिंग में दे रही है। बस यही कारण है कि 60% आईडी ग्रेजुएट इसरो का सैलरी स्ट्रक्चर सुनकर ही वर्कआउट कर जाते हैं। 40% में भी ISRO को ज्वाइन करनेवाले काफी कम होते हैं। गवर्नमेंट के मुकाबले प्राइवेट सेक्टर में ग्रोथ के संभावनाएं काफी ज्यादा होती है। कंपनी बदलने के ऑप्शंस भी काफी ज्यादा होते हैं । केंपस प्लेसमेंट में और भी काफी सारी प्राइवेट कंपनी आती है। इसलिए बचे हुए 40% स्टूडेंट के लिए भी कंपनी से अच्छा ऑफर आता है। IIT ग्रेजुएट प्राइवेट कंपनी ज्वाइन कर जाते हैं, बस यही करने की आज की समय में इसरो को क्वालिफाइड इंजीनियर और क्वालिफाइड स्टाफ की काफी कमी महसूस होने लगी है।

बेहतरीन उच्च क्षमता वाले स्टूडेंट और ग्रैजुएट्स इसरो को ज्वाइन ही नहीं करेंगे तो इसके कारण भारत की स्पेस एजेंसी इसरो की फ्यूचर ग्रोथ काफी ज्यादा प्रभावित होगी । आने वाले समय में इसका विकल्प काफी चुनौती पूर्ण हो सकता है। सरकार ISRO के कर्मचारी की सैलरी को दुगना या तीन गुना भी कर देती है, तब भी भारत सरकार प्राइवेट कंपनी के पैकेज को कभी बराबरी नहीं कर पाएगी। आईटी ग्रेजुएट का प्रारंभिक औसत वेतन पैकेज वार्षिक 18 से 20 लाख होता है। बाद में फिर व्यक्तिगत क्षमता के ऊपर यह करोड़ों में बदल जाता है जबकि प्राइवेट कंपनी आज की डेट में आईआईटी ग्रैजुएट को लाखों करोड़ का पैकेज स्टार्टिंग में दे रही है। बस यही कारण है कि 60% आईडी ग्रेजुएट इसरो का सैलरी स्ट्रक्चर सुनकर ही वर्कआउट कर जाते हैं। 40% में भी ISRO को ज्वाइन करनेवाले काफी कम होते हैं। गवर्नमेंट के मुकाबले प्राइवेट सेक्टर में ग्रोथ के संभावनाएं काफी ज्यादा होती है। कंपनी बदलने के ऑप्शंस भी काफी ज्यादा होते हैं । केंपस प्लेसमेंट में और भी काफी सारी प्राइवेट कंपनी आती है। इसलिए बचे हुए 40% स्टूडेंट के लिए भी कंपनी से अच्छा ऑफर आता है। IIT ग्रेजुएट प्राइवेट कंपनी ज्वाइन कर जाते हैं, बस यही करने की आज की समय में इसरो को क्वालिफाइड इंजीनियर और क्वालिफाइड स्टाफ की काफी कमी महसूस होने लगी है।

यहां तक की प्रतिभाशाली भारतीय छात्रों की लगन और मेहनत को देखते हुए विदेश से भी आकर्षक वेतन वाले कई जॉब्स ऑफर मिल जाते हैं। यह भी बहुत बड़ा कारण है कि भारतीय युवा देश की सेवा को प्राथमिकता ना देकर विदेश में आकर्षक वेतन वाले पैकेज को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह भी है कि भारत में सर्विस करना देश की सेवा करने जैसा नहीं समझा जाता है। जिस तरह से IAS, IPS, आर्मी एयरफोर्स या नेवी इन सब को ज्वाइन करना देश सेवा से जोड़कर देखा जाता है, वैसा कुछ इसरो के साथ अभी तक नहीं है। और इसरो को अभी भी एक सरकारी नौकरी वाली कंपनी की तरह देखा जाता है। खैर सरकार को जल्द से जल्द ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे IIT वाले देश के टॉप इंजीनियर इसरो को ज्वाइन करें।

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