अमेरिका ने किया भारत का अपमान, हथकड़ी को लेकर सरकार और विपक्ष आमने-सामने


नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को संसद में अमेरिका से 104 अवैध भारतीय अप्रवासियों के निर्वासन की प्रक्रिया पर विस्तार से जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने निर्वासन में हथकड़ी और जंजीरों के इस्तेमाल को अमेरिकी मानक प्रक्रिया का हिस्सा बताया, जिसे लेकर विपक्ष ने सरकार पर “भारतीयों का अपमान” करने का आरोप लगाया। यह मामला तब चर्चा में आया जब एक अमेरिकी सैन्य विमान से निर्वासित भारतीयों को लेकर अमृतसर में उतरने के बाद विपक्ष ने संसद में हंगामा किया।

निर्वासन प्रक्रिया पर जयशंकर का बयान

जयशंकर ने राज्यसभा में बताया कि अमेरिका से भारतीयों का निर्वासन कोई नई प्रक्रिया नहीं है। यह 2009 से जारी है और अब तक 15,668 भारतीयों को वापस लाया जा चुका है। उन्होंने स्पष्ट किया कि निर्वासन अमेरिकी अप्रवासियों एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) की मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के तहत होता है, जिसमें सुरक्षा के लिए हथकड़ी और जंजीरों का उपयोग शामिल है। हालाँकि, उन्होंने दावा किया कि महिलाओं और बच्चों को इन प्रतिबंधों से छूट दी गई है। साथ ही, उड़ान के दौरान भोजन, चिकित्सा सुविधाएँ और अन्य आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है।

मंत्री ने कहा, “शौचालय जाने जैसी स्थितियों में अस्थायी रोक लगाई जा सकती है। यह नियम सैन्य और नागरिक दोनों प्रकार के विमानों पर लागू होता है।” उन्होंने यह भी बताया कि 5 फरवरी, 2025 को होने वाली निर्वासन उड़ान में कोई प्रक्रियात्मक बदलाव नहीं किया गया है। हालाँकि, तारीख को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है, क्योंकि यह घटना हाल के दिनों की है।

अमेरिका में निर्वासन की प्रक्रिया कैसे काम करती है?

अमेरिकी नियमों के अनुसार, निर्वासन की प्रक्रिया आमतौर पर गिरफ़्तारी से शुरू होती है। ICE अधिकारी कार्यस्थलों, घरों या सार्वजनिक स्थलों पर छापेमारी करके अवैध अप्रवासियों को हिरासत में लेते हैं। इसके बाद उन्हें देशभर में फैले 100 से अधिक ICE हिरासत केंद्रों में रखा जाता है, जहाँ से उनकी कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है।

यदि अदालत निर्वासन का आदेश देती है, तो व्यक्ति को अमेरिका की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थित चार प्रमुख केन्द्रों—मेसा (एरिजोना), अलेक्जेंड्रिया (लुइसियाना), सैन एंटोनियो और हार्लिंगन (टेक्सास)—में ले जाया जाता है। वहाँ से उन्हें या तो वाणिज्यिक उड़ानों या ICE के विशेष विमानों से उनके मूल देश भेज दिया जाता है। ट्रम्प प्रशासन के दौरान इस प्रक्रिया में सैन्य विमानों का उपयोग भी शुरू हुआ, जिसे बाइडन सरकार ने जारी रखा।

उड़ान के दौरान क्या होता है?

ICE के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, निर्वासित व्यक्तियों को हथकड़ी, पैर की बेड़ियाँ और पेट की जंजीरें पहनाई जा सकती हैं। हालाँकि, बच्चों और उनके साथ यात्रा कर रहे परिवारों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होता। प्रत्येक उड़ान में 13 से 20 सुरक्षाकर्मी और चिकित्सा स्टाफ होते हैं, जो यात्रा के दौरान सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों का ख्याल रखते हैं। निर्वासितों को केवल 18 किलोग्राम सामान ले जाने की अनुमति होती है, और उन्हें भोजन व आवश्यक सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

विपक्ष का आरोप: ‘भारतीयों का अपमान’

इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने सरकार पर जोरदार हमला बोला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और वामदलों के नेताओं ने संसद परिसर में हथकड़ी पहनकर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने “मानव, कैदी नहीं” और “भारत चुप नहीं रहेगा” जैसे नारे लगाए। विपक्ष का कहना था कि सरकार ने अमेरिकी प्रक्रियाओं पर सवाल नहीं उठाया, जिससे भारतीयों की गरिमा को ठेस पहुँची।

राहुल गांधी ने कहा, “हथकड़ी लगाना अमानवीय है। सरकार को अमेरिका से इसका विरोध करना चाहिए था।” इसके जवाब में जयशंकर ने कहा कि भारत लगातार अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहा है, लेकिन निर्वासन प्रक्रिया में दूसरे देश के कानूनों का सम्मान करना भी जरूरी है।

क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून?

विशेषज्ञों के अनुसार, निर्वासन के दौरान बल प्रयोग को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानकों में स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। संयुक्त राष्ट्र के ‘बंदी उपचार संबंधी न्यूनतम मानक नियम’ (नेल्सन मंडेला नियम) के अनुसार, हथकड़ी का उपयोग केवल अंतिम विकल्प के रूप में किया जाना चाहिए। हालाँकि, अमेरिका सहित कई देश सुरक्षा के नाम पर इन नियमों में ढील देते हैं। भारत सरकार का तर्क है कि चूंकि निर्वासन अमेरिकी अधिकारियों द्वारा किया जाता है, इसलिए उनके नियम लागू होते हैं।

निर्वासन के आँकड़े और राजनीतिक प्रभाव

2009 से अब तक अमेरिका से 15,668 भारतीय निर्वासित किए जा चुके हैं। यह संख्या अवैध अप्रवासन की गंभीरता को दर्शाती है। अधिकांश निर्वासित व्यक्ति पंजाब, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों से हैं, जहाँ से लोग रोजगार की तलाश में अमेरिका जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला दोनों देशों के बीच आव्रजन समझौतों पर पुनर्विचार की माँग को बल देता है। साथ ही, यह भारत सरकार के लिए एक चुनौती है कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करते हुए अंतरराष्ट्रीय संबंधों को संतुलित करे।

संवेदनशीलता और कूटनीति का सवाल

निर्वासन प्रक्रिया में हथकड़ी के इस्तेमाल ने एक बार फिर मानवाधिकार बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा की बहस छेड़ दी है। जहाँ सरकार का कहना है कि वह अमेरिकी नियमों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, वहीं विपक्ष इसे भारत की छवि को नुकसान पहुँचाने वाला कदम मानता है। इस मुद्दे पर राजनीतिक एकता की कमी स्पष्ट है, लेकिन यह सवाल महत्वपूर्ण है: क्या अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियाओं में नागरिकों की गरिमा की रक्षा के लिए भारत को और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए? इसका जवाब आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक वार्ताओं पर निर्भर करेगा।

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